जीवन का उद्देश्य

ये मेरे लिए बहुत बढ़े सम्मान की बात है कि मुझे यहाँ कुछ कहने का मोका मिला और मैं यहाँ कहना चाहता हूँ के ये एक व्यखान नही है| मैं नही समझता की मैं व्यखान की तय्यरी करके आया हूँ, लेकिन एक ये एक किस्म की नसीहत है मेरे लिए भी क्यूंकी मैने खुद अपने सामने रखी कुर्सी पर बैठ कर देखा है| सिर्फ़ कुछ ही दिनो पहले कुछ ही सालो पहले कुछ ही लम्हो पहले, मैं बिल्कुल यहीं बैठा था जहाँ आप बैठे हैं| ईसाई, गैर मुस्लिम, कोई भी धर्म इसकी कोई मेहतव नही है| एक मनुष्ये जो की इस्लाम से वाकिफ़ नही है और किसी लम्हे पर मैं भी एक था जो हक़ीकत मैं ज़िंदगी गुज़ारने का मकसद नही जानता था|

जानकारी है जो मैं आपके साथ साझा करना चाहते हैं, यह थोड़ा व्यापक लग सकता है।जानकारी जो मैं आपके साथ साझा करना चाह हैं, यह थोड़ा व्यापक लग सकता है।जब आप मानते हैं मानव मस्तिष्क की शॅम्ता और जानकारी की मात्रा की शॅम्ता जो वो गुणवाचन कर सकता है| तो आज के कुछ पन्नो के साथ जानकारी,मुझे यकीन है क ये आपका पल्ला भारी नही करेंगे|

ये मेरी ज़िम्मेदारी है के आज की बहेस का टॉपिक आप को बता दूँ – हमारी ज़िंदगी का मकसद क्या है? और मैं आपसे सवाल करना चाहूँगा की आप इस्लाम के बारे मैं क्या जानते हैं? मेरा मतलब ये है के – क्या आप वाकाई इस्लाम को जानते हैं? नही, क्या सुना है आपने इस्लाम के बारे मैं; नही, क्या देखा है आपने कुछ मुसलमानो को करते हुए, लेकिन क्या जानते हैं आप इस्लाम के बारे मैं?

ये मेरे लिए बहुत बढ़े सम्मान की बात है कि मुझे यहाँ कुछ कहने का मोका मिला की मैं शुरू करू उस बात से की आप सब की बराबर ज़िम्मेदारी है| और ये ज़िम्मेदारी है की हम अपने खुले दिल और खुले ज़हेन के साथ पढ़े और सुने|

ये दुनिया तासुब और तहज़ीबी रस्मोरिवाज मैं डूबी हुई है ये किसी इंसान के लिए बहुत मुश्किल है के वो कुछ लम्हात सोचने के लिए निकाले| अपनी ज़िंदगी के मकसद के बारे मैं सोचे| कोशिश करें के हुमारी हकीकी ज़िंदगी के मकसद को और सच्चाई को इस दुनिया के सामने लाएँ| बदक़िस्मती से जब हम बहुत से लोगो से सवाल करते हैं के “आप की ज़िंदगी का मकसद क्या है?” जो की एक बुनियादी और ज़रूरी सवाल है, वो आपको नही बातायँगे के क्या उन की अपनी ज़िंदगी के बारे मैं ये अवलोकन या विश्लेषणात्मक तर्क के माध्यम हैं| बहुत बार तो ये भी आपको कहेंगे की ये वो कहता वो ये कहता है और आपको ये बातायँगे की आम तौर पर लोग क्या समझते हैं| मेरे पिताजी कहते थे की ज़िंदगी का मकसद वही है जो पाद्री ज़िंदगी का मकसद बताए जो मेरे अध्यापक स्कूल मैं बताए या जो मेरे दोस्त बताए|

अगर मैं किसी से कुछ खाने का मकसद पूछता हूँ, “क्यू हम खाते हैं?” बहुत से लोग सिर्फ़ एक शब्द मैं उत्तर देंगे की,”ये हुमारी गिज़ा है” क्यूंकी गिज़ा हुमारी ज़िंदगी को कायम रखती है| “अगर मैं कहू के हम क्यू काम करते हैं?” वो कहेंगे की ये ज़रूरी है हुमारे लिए और इसके ज़रिए हम अपनी और अपने कुनबे की ज़रूरियत को पूरा करते हैं| अगर मैं किसीसे पूछ लू के वो क्यू सोते हैं, वो क्यू नहाते हैं, वो क्यू वस्त्र पहनते हैं वगेरा वगेरा वो जवाब देंगे के “ये आम ज़रूरियत इंसानो के लिए हैं”, हम इस तरह के करोड़ो सवाल पूछ सकते हैं किसी भी ज़ुबान मैं और दुनिया मैं किसी भी जगह हर एक से एक ही जेसे जवाबत प्राप्त होंगे, बिल्कुल इसी तरह के जब हम सवाल करते हैं किसी से के ज़िंदगी का हासिल और ज़िंदगी का मकसद क्या है तो हम क्यू तरह तरह के उत्तर हासिल करते हैं| क्यूंके लोग उलझे हुए हैं वो हक़ीकत मैं नही जानते वो अंधेरो मैं भटक रहे हैं बजाए इसके के वो बताए के हम नही जानते वो एसे उत्तर देते हैं| जिससे एसा लगता है के पहले से तय्यार किए गये हैं|

चलें इस बारे मैं सोचते हैं| क्या इस दुनिया मैं हुमारी ज़िंदगी का मकसद सिर्फ़ खाना, सोना, वस्त्र पहनना, काम करना, कुछ हासिल कारणओर खुद को खुश रखना है? क्या यही हुमारी मकसद है? हम क्यू पैदा हुए? हुमारे होने का मकसद क्या है? और क्या राज़ छुपा है इस मखलूक को पैदा करने और इस ज़बरदस्त ब्रह्मांड को बनाने मैं? इन सवालो के बारे मैं सोचिए!

कुछ लोग कहते हैं के ये साबित नही होता के कोई खुदा की हक़ीकत की हक़ीकत है| ये भी साबित नही होता के कहीं खुदा है| इस बात के भी सबूत नही है के ये ब्रह्मांड वजूद मैं आने का खुदा का कोई मकसद है| जो लोग इस तरह सोचते हैं और जो कहते हैं के दुनिया एसे ही वजूद मैं आ गयी, और बस एक बहुत बढ़ा विस्फोट हुआ और इतनी ज़बरदस्त दुनिया अपनी तरह तरह की मखलूक और सुंदरता के साथ वजूद मैं आ गयी| और वो कहते हैं की ज़िंदगी का कोई खास मकसद नही है और ये के ये साबित नही हो सकता के खुदा है या कोई मकसद या खुदा का कोई मकसद है इस दुनिया को वजूद मैं लाने के लिए चाहे मन्तिक या विज्ञान से|

यहाँ मैं क़ुरान पाक की कुछ आयत पढ़ना चाहूँगा जो के हुमारे टॉपिक से मिलती हैं|

“आसमानो और ज़मीन के जन्म लेने मैं और रात दिन के आने जाने मैं यक़ीनन अकल्मांदों के लिए निशानिया हैं| जो अल्लाह तालहा का ज़िक्र उठते बैठते और अपने करवाटो पे लेटे हुए करते हैं और आसमानो और ज़मीनो की पैदाइश मैं गौर ओ फ़िक्र करते हैं और कहते हैं ए हुमारे परवर्दीगार तूने ये बे मकसद नही बनाया, तू पाक है| बस हमें आग के आज़ाब से बचाले|”

[क़ुरान – सुरा-३, आयात- १९०-१९१]

ऊपर दी गयीं आयात मैं अल्लाह तआलआ बिल्कुल सॉफ तरीके से ज़िक्र करता है, वो पहले तवज्जे हमारी स्रजन के तरफ दिलाता है| इनसानी जिस्म के विभिन्न हिस्से और लोगों की विभिन्न सोच और अंदाज़ और वो हमारी तवज्जे जंतुओ की तरफ दिलाता है, दिन और रात के बदलने की तरफ, सितारो की तरफ, आसमान की तरफ और आज़्ज़ाम फलक की तरफ और फिर वो कहता है के उसने ये सब चीज़े किसी बेवकूफ़ाकना मकसद के लिए पैदा नही की हैं क्यूंके जब आप उसकी हिकमत को देखते हैं तो आप जानते हैं के उसकी हिकमत कितनी कितनी ज़ादा ताकतवर और कितनी ज़बरदस्त है और कुछ उसकी हिकमत अमली जो बहुत ताकतवर और बहुत ज़बरदस्त है| हमारी सोच और हमारे अंदाज़ो से बाहर होती है ये कोई बेवकूफी या पागलपन नही हो सकता| ये आएसा भी नही होसकता की बस हो गया|

फ़र्ज़ करें के आप दस मार्बल के टुकड़े लें और उन्हे एक से साद तक नंबर दें और ये तमाम अलग अलग रंग के हों और आप उन्हे थैले के अंदर रखें और फिर थैले को हिलाएँ और फिर आप अपनी आँखो को बंद करें और फिर थैले को खोले और मैं आपसे कहूँ के पहला मार्बल का टुकड़ा निकालें और फिर दूसरा नंबर वाला और फिर तीसरे नंबर वाला टुकड़ा निकालें| एक तरकीब के साथ आपको कितना अंदाज़ा है के आप ये सारे मार्बल नंबरओं की टरतीब से निकाल लेंगें? क्या आप जानते हैं के आप ये कितनी बार मैं कर सकते हैं| २६मिलियन मैं से एक बार! तो कितनी संभावना है जन्नत के और ज़मीन फेंकी जाने के ज़बरदस्त धमाके से बन सकता है जेसा ये आज है| कितनी संभावना है इन सब चीज़ो की?

मेरे प्रिय काबिल दोस्तों- हमैन अपने आप से एक और सवाल करना पढ़ता है| जब आप पुल देखते हैं, एक इमारत या एक चलती गाढ़ी देखतें हैं तो आप खुद बा खुद समझ जातें हैं के ये किसी शक्स या किसी कंपनी ने बनाई होगी| जब आप एक हवाई जहाज़, रॉकेट, सेटिलाइट या एक बढ़ा पानी का जहाज़ देखतें हैं, आप भी सोचते हैं के ये केसी अविश्वसनीय सवारियाँ हैं| जब आप देखतें हैं एक न्यूक्लियर प्लांट, एक अंतरिक्ष स्टेशन, एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा जो तमाम चीज़ो से लेस हो, ये भी और दूसरी चीज़ें पाई जाती हैं इस मुल्क मैं- आप इन तमाम चीज़ों की इंजीनियरिंग गतिशीलता की तारीफ़ किए बिना नही रह सकते|

ये तो बस चीज़ें थी जो के इंसान ने बनाई हैं| इंसानी जिस्म और बढ़े और उलझे हुए निज़ाम के बारे मैं क्या हाल है? ज़रा इस बारे मैं सोचिए! सोचिए दिमाग़ के बारे मैं केसे वो सोचता है, केसे वो काम करता है, कैसे यह सोचता है, कैसे यह काम करता है, यह कैसे ये विश्लेषण करता है, कैसे ये जानकारी संग्रहित करता है, जानकारी हासिल करता है, और सेकेंड के हज़ारवें हिस्से मैं कैसे श्रेणी मैं जानकारी को संग्रहित करता है! और दिमाग़ तमाम चीज़े मुस्तकिल करता रहता है| एक लम्हे के लिए एक दिमाग़ के बारे मैं सोचिए| ये दिमाग़ ही है जो गाढिया बनाता है, रॉकेट, कश्ती और बहुत कुछ- ज़रा दिमाग़ और जो वो बनाता है उसके बारे मैं सोचिए| दिल के बारे मैं सोचिए, कैसे वो मुस्तकिल साथ से सत्तर सालों तक पंप करता है और पुर जिस्म से खून लेता और छोड़ता रहता है और जिस्म को कैसे कायम रखता है के इंसान की पूरी ज़िंदगी चलती रहती है| ज़रा इस बारें मैं सोचिए! ज़रा इस बारें मैं सोचिए! गुर्दो के बारें मैं सोचिए के वो केसे अपना काम जारी रखतें हैं| जिस्म का सफ़ाई साधन है, जो सैकड़ों रासायनिक विश्लेषणों के साथ- साथ और भी करता है, जैसे रक्त में विषाक्तता का स्तर नियंत्रित करता है। यह स्वचालित रूप से करता है। अपनी आँखों के बारे मे सोचिए इंसानी कॅमरा खुद बा खुद फोकस करता है आँखे तर्जुमानि करती हैं अंदाज़े लगाती हैं और खुद से रंगो को पहचानती हैं कुद्रती तौर पर रोशनी और फ़ासले की पहचान और अंदाज़ा करना, ये तमाम चीज़े खुद बा खुद काम करती हैं| इस बारे मैं सोचिए|

किसने ये बनाई हैं? कौन इनका मालिक है? किसकी ये हिकमत है? और किसने इन्हे टरतीब दिया है? क्या इंसानो ने खुद? नही| बेशक नही|

ये कयनात क्या है? ज़रा इस बारे मैं सोचिए| धरती हमारे ब्रह्मांड का एक ग्रह है| और हमारा ब्रहमांड एक निज़ाम है कहकशा का और कहकशा एक सितारो का झुंड है बहुत सी कहकशाओ मैं| ज़रा सोचिए की ये तमाम चीज़े एक टरतीब मे हैं ये तमाम सही काम कर रही हैं| ये आपस मैं एक दूसरे से टकराती नही हैं और ना ही इनका आपस मैं तसादाम होता है| वो अपने मीडार के साथ टेरटी हैं जेसे वो उसके लिए हैं| क्या इंसान इस तरह की हरकत मैं रह सकता है? क्या इंसान पूढ़ता के साथ ये सब कुछ कर सकता है? नही| यक़ीनन नही बेशक नही|

सोचो उन समन्दरों, मछलियों, कीड़ों, पौधों, जीवाणुओं, रासायनिक तत्वों के बारे में जिन्हें खोजा नहीं गया है और जिन् का पता भी नहीं लगाया जा सकता है यहां तक कि सबसे अधिक परिष्कृत उपकरणों से भी नहीं| फिर भी, उनमें से हर एक का कानून है जोसका वह पालन करते है। क्या यह सारा तुल्यकालन, संतुलन, सद्भाव, भिन्नता, डिजाइन, रखरखाव, संचालन, और अनंत संख्यान इत्तिफाक से हुआ? और क्या यह सारी चीज़ें इत्तिफाक से ही उत्तम तरीके से, हमेशा से काम कर रही हैं? और क्या यह सब इत्तेफाक से ही प्रजनन किये जा रही हैं, अपने आप को बरकरार रखें हैं? नहीं, बिलकुल नहीं|

सोचें तो ये बहुत विसंगत और बेवकूफी वाली बात लगेगी लेकिन बहुत छोटा सा आपको इशारा ज़रूर देगा के आख़िर ये कहाँ से आए| ये इंसान की सोच से बिल्कुल बाहर है| हम सब इस बात की पुष्टि करते हैं| जो जिस काबले ए फ़िक्र है और जो काबिल है उसका शुक्र अदा किया जाए वो जिसके पास तमाम क्षमताओं हैं वो खुदा है| खुदा ने ये सब पैदा किया और वो इन तमाम चीज़ो के कायम रखने का ज़िम्मेदार है| खुदा बस एक है जो क़ाबिले तारीफ और जिसका शुक्र आडया किया जाए|

अगर हम मे से हर एक को १०० डॉलर बाटू बिना किसी वजह के सिर्फ़ यहाँ आने पर, आप मेरा कम से कम धनियवाद करेंगे| तो आँखो के बारे मैं किया, आपके गुर्दे, आपका दिमाग़, आपकी ज़िंदगी, आपकी साँस और आपके बच्चो के बारे मैं क्या ख्याल है? इस बारे मैं आप क्या जानते हैं? किसने दिए हैं ये आपको? क्या वो सरहाने या शुक्रिया कहलाने के हक़दार नही हैं? क्या वो आपसे अपनी इबादत करवाने और अपने आपको मनवाने का हक़दार नही हैं? मेरे भाइयो और बहनो दूसरे लफ़ज़ो मई ये है मकसद और हासिल ज़िंदगी का|

अल्लाह ता आला क़ुरान पाक मे फरमाता है:

“मैने जिन्नात और इंसानो को सिर्फ़ इसलिए पैदा किया है के वो सिर्फ़ मेरी इबादत करें”

(क़ुरान सुरा ५१, आयात ५६)

ये है जो कहा अल्लाह ता आला ने| तो हमारी ज़िंदगी का मकसद है के हम अपने बनाने वाले को पहचाने और उसके एहसान मंद हों| खालिक़ की इबादत करें| हम अपने आप को उसके सामने झुका लें| और उसके क़ानूनो पर चलें जो उसने दिए हैं| कम शब्दो मैं इसका मतलब इबादत है| ये हमारी ज़िंदगी का मकसद है| और इस इबादत को करने के लिए हम किया करेंगे, खाएँगे, पिएँगे, कपड़े पहनेंगे, काम करेंगे, मज़े उड़ाएंगे अपनी ज़िंदगी और मौत के बीच| ये सब तो लाज़मी है ही| हमको पैदा किया गया है इबादत के लिए| ये हमारी ज़िंदगी का मकसद होना चाहये| मेरा ईमान है के कोई भी जो के विज्ञान या तजज़ियती इल्म रखने वाला इस मक्सद से मुतताफ़ीक़ होगा| लोगों के हो सकता है और दूसरे मकसद भी हों लेकिन कुछ है जो उनके और खुदा के दरमियाँ चल रहा है|

अब हम मोज़ू के दूसरे हिस्से की तरफ आते हैं|आप इस्लाम के बारें मैं क्या जानते हैं? नही, क्या आपने इस्लाम के बारे मैं सुना है? नही, क्या आपने देखा है मुसलमानो को अमल करते हुए? क्यूंके इस्लाम और मुसलमानो मैं बढ़ा फ़र्क़ है| इसको यूँ समझे के जिस तरह एक बाप और एक आदमी| एक आदमी जिसके बच्चे हों| वो है एक बाप, लेकिन बाप होने की हेसियत से उसकी ज़िम्मेदारियाँ हैं| अगर एक आदमी अपनी ज़िम्मेदारियूं को पूरा नही करता है तो ये लाज़मी नही है के वो अच्छा बाप नही है| इस्लाम एक हुक्म और क़ानून है| अगर एक मुसलमान इस हुक्म की पाबंदी नही करता और क़ानून पर अमल नही करता तो वो अच्छा मुसलमान नही है लिहाज़ा इस्लाम को मुसालमोनो के लिहाज़ से नही देखें|

हमने इस्लाम और मुसलमानो जेसे शब्द सुने हैं और हम अपने स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीओ के निसाब की किताबों मैं इस्लाम के बारे मैं पढ़ते हैं हमने बहुत सी ग़लत, गुमराह करने वाली बातें और जानते बूझते झूती खबरें जोकि पहलाई गयीं, मीडीया के ज़रिए सुनी और देखीं| और मैं इस बात को मानता हूँ के कुछ इस तरह के ग़लत मालोमात और ग़लत बयानी हमेशा खुद मुसलमान भी करते हैं इस के बावजूद इस दून्निया मैं पाँच अरब मुसलमान हैं हर पाँच लोगों मैं से एक मुसलमान है| ये रिसर्च है आप इसकी तस्दीक़ एन्साइक्लोपीडिया या दूसरे ज़रिए जिससे भी आप चाहें कर सकते हैं ये केसे हो सकता है के इस दुनिया मैं हर पाँच मैं से एक शक़स मुसलमान हो और हम कहें के इस्लाम की हक़ीकत के बारे मैं हम कुछ नही जानते? अगर मैं आपसे कहूँ के दुनिया मैं हर पाँच मैं से एक शक़स चीनी था, जोकि हक़ीकत है| एक अरब चीनी दुनिया मैं हैं| हर पाँच लोगों मैं एक चीनी है तो आप जानते हैं चीनी और चीनी लोगों के जियोग्रफी, सोसाइटी, राजनीति, फिलॉसोफी और हिस्टरी को| तो केसे हम इस्लाम के बारे मैं नही जानते?

क्या है ये ताल्लुक़ जो जोड़ता है अलग अलग कोमों और इस कयनात की टरतीब को एक बिरादरी मैं? जो मेरे बहिन, भाई यमन मैं बनता है जबके मेरा ताल्लुक़ अमेरिका से है और जो मुझे भाई बनाते हैं मेरे भाई बहिन ऑस्ट्रेलिया से हैं और एक दूसरा भाई इंडोनशिया मैं है| और भाई आफ्रिका से और दूसरा एक भाई थाइलॅंड से और इटली से, ग्रीस, पोलॅंड, ऑस्ट्रीया, कोलंबो, बोलोविया, कॉस्टा रीका, चाइना, स्पेन से, रूस से और बहुत से| क्या है जिसने इनको मेरी बहिन और मेरा भाई बनाया? हम मुख़्टालीफ़ तहज़ीबो और नफ्सीयती पसमंज़र से ताल्लुक रखते हैं! क्या है इस्लाम मैं जो हमे खुद बा खुद क़ुबूल करता है? और हमें भाईचारे मैं जोड़ देता है? असल वजह क्या ज़िंदगी के बारे मैं ग़लत फहमी की जो के लोगों मैं बढ़ी तादाद मैं हैं

मैं कोशिश करूँगा के कुछ हक़ीक़तें आपके सामने रख सकूँ लेकिन इसके साथ, जेसे मैने पहले कहा की ये ज़रूरी है के आप खुला ज़हेन और खुला दिल रखें क्यूंकी अगर मैं ग्लास को उल्टा रखकर इस पर पानी उंड़ेलू तो मैं कभी भी ग्लास मैं पानी हासिल नही कर सकता इसको सीधा करना पड़ेगा सिर्फ़ हक़ीक़तों से ही बात समझमें नही आती है इसके साथ बर्दाश्त होसला सरहाने का जज़्बा और सच्चाई को क़ुबूल करने की ज़रूरत होती है जब भी आप सुनें|

शब्द ‘इस्लाम’ का अर्थ है मगलूग होना (गुलाम), तसल्लूम मैं सर झुका लेना, फर्मा बरदारी करना| आप इसे इल्हा कह सकते हैं, खालिक़ कह सकते हैं, अज़ीम खुदा कह सकते हैं, अज़ीम ताक़त कह सकते हैं और ऐसे जीतने अच्छे नाम हैं सब इसके हैं|

मुसलमान खुदा के लिए अरबी शब्द इल्हा इस्तीमाल करते हैं क्यूंके अरबी मैं इसके कोई दूसरे मतलब नही हैं| शब्द इल्हा किसी भी मखलूक़ पर नही रख सकते अलबत्ता अज़ीम जेसे दूसरे अल्फ़ाज़ लोग मखलूक़ के लिए इस्तीमाल करते हैं| मिसाल के लिए जेसे “सबसे बढ़ा डॉलर”, “मैं अपनी बीवी को बहुत प्यार करता हूँ”, या वो अज़ीम हैं| नही नही नही नही लेकिन शब्द इल्हा एक पर ही लागू होता है जिसने सबको पैदा किया जिनका हम पहले ज़िक्र कर चुके हैं| यहाँ से हम शब्द इल्हा के इस्तीमाल की तरफ जातें हैं और आप जानते के हम किसके बारे मैं बात कर रहें हैं|

शब्द इस्लाम लिया गया है ‘सलामह’ की जड़ से जिसका मतलब है अमन| एक मुसलमान एक शक़स है जो के मगलूग होता है, तसलीम करता है और फर्मा बरदारी करता है अज़ीम खुदा के क़ानून की और उसे उन तस्लीमत से अमन और सुकून हासिल होता है| हम जल्द देख सकेंगे इस तशरी से के अरबी शब्द ‘इस्लाम’ हमें बताता है वही तरीका और इख्लाक़, जो बताया था माशहूर और क़ाबिल एह्त्राम इल्हा के रासूलों और पेगंबरों ने| इन मैं आदम, नूः, दाऊद, सुलेमान, इसहाक़, इस्माईल, युसुफ, यहयाः, मरयम के बेटे ईसा और मोहम्मद स:| ये तमाम रसूल और पैग़ंबर एक ही इलाह की तरफ से भेजे गये और एक ही पैगाम लेकर आए इन सब के बात करने का एक ही अंदाज़ था और ये कहते थे बस एक चीज़| इलाह की फार्मबरदारी करो! अज़ीम इलाह की इबादत करो, ज़िंदगी का मकसद पूरा करो और अच्छे काम करो तो आपको उसका बदला दूसरी ज़िंदगी मैं मिलेगा| ये तमाम कहते थे की इस से आगे कुछ नही करना इससे बजाए की उनकी ज़ुबान किया थी और किस वक़्त के थे और किसने उन्हे भेजा, वो सब कहते यही थे|

अगर आप पन्ने थोड़ा ख्याल से बिना अपनी सोच को या किसी दूसरे के किए गये इज़ाफ़े को या झूट को शामिल किए पढ़ें तो आप पाएँगे के ये एक सादा पेगाम था तमाम पेगंबर का जिस एक से दूसरे ने ताज़दीक की इन पेगम्बरो मैं से कोई भी आएसा नही था की जिसने कभी कहा हो के मैं खुदा हूँ मेरी इबादत करो| आप अपनी पाक किताबें देखलें आप किसी किताब मैं नही पायंगे ना तो इंजील मैं, ना तोरा मैं, ना अहेद्नामे मैं, ना ज़ुबूर मैं, आप किसी किताब मैं नही पायंगे| आप किसी पेगंबर की तक़रीर मैं नही पायंगे, आप घर जाएँ रात मैं और इंजील के तमाम पन्ने पलट के देखें और मैं ज़िम्मेदारी लेता हूँ के आप कहीं नही पायंगे| कहीं भी! तो ये कहाँ से आया? ये है जिसकी आपको तहकीक करनी पड़ेग|

इस वजाहत से आसानी से हम देख सकते हैं के अरबी शब्द जो हमे बताता है वो पेगम्बरो ने करके दिखाया| वो तमाम आए और खुद को अल्लाह के सामने पेश कर दिया| अल्लाह का गलबा खुद पर चड़ा लिया, लोगों को अल्लाह की तरफ बुलाया, लोगों को कहते रहे और इसरार करते रहे के नेक काम करें| मूसा के दस एहकामात, वो क्या थे? इब्राहिम की तक़रीर, वो क्या थी? दाऊद की ज़ुबूर वो क्या थी? सुलेमान की मिसालें, क्या कहा था उन्होनें? ईसा की गॉस्पेल, उन्होने क्या कहा? यहयाः ने क्या कहा था? इशाक़ ने क्या किया और इस्माईल ने क्या कहा? मोहम्मद स: ने क्या कहा? इससे ज़ादा कुछ नही!

“उन्हे इसके सिवा कोई हुकुम नही दिया गया के सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करें उसके लिए दीं को खालिस रखें| इब्राहिम हनीफ़ के दीन पर और नमाज़ को कायम रखें और ज़कात देते रहें, यही है दीन सीधी मिल्लत का”

(क़ुरान सुरा ९८, आयात ५)

अल्लाह ताआला फरमाते हैं के “वो कोई हुकुम नही देते सिवाए इसके के अल्लाह की इबादत की जाए, सिर्फ़ उसके बनके रहो और यही सीधा रास्ता है| ये असल पेगाम था| इसी तरह ये बेहतर होगा के हम समझे रासूलों और पेगम्बरो को मुसलमानो की तरह| क्यूंकी एक मुसलमान क्या है? अरबी इस्तलहात को छोड़े, ये भी ना सोचें की हम क्या कह रहें हैं” मक्के के बारे मैं या साओदी अरब या मिस्र के बारे मैं ना सोचें! नही! सोचें शब्द मुसलमान का क्या मतलब है| “जो अज़ीम अल्लाह के सुपुर्द कर्दे और अज़ीम अल्लाह के क़ानूनो पर अमल करता रहे”, इसमे चाहे सुपुर्दगी कुद्रती हो या मादी तोर पर| हर तरह से अल्लाह के क़ानूनो के आगे सर झुकाए वो मुस्लिम है|

तो जब एक बचा अपनी माकी कोक से बाहर आता तो उस वक़्त अल्लाह का हुक्म होता, वो क्या है? वो एक मुसलमान है जब सूरज अपने दायरे के अंदर घूमता है तो वो क्या है? एक मुसलमान है! कशिश शकल का क़ानून वो क्या है? वो एक मुसलमान है! हर वो चीज़ जो खुद को अज़ीम खुदा के सुपुर्द करती है वो मुसलमान है! लिहाज़ा जब हम अपनी मर्ज़ी से अज़ीम खुदा की फर्माबरदारी करते हैं तो हम मुसलमान हैं! ईसा मसीह एक मुसलमान थे| उनकी मेहेरबान मां मुसलमान थी| इब्राहिम मुसलमान थे, मूसा एक मुसलमान थे| तमाम पेगंबर मुसलमान थे! लेकिन वो अपने लोगों मैं आए और वो मुख्तलिफ ज़ुबान बोलते थे| हज़रत मोहम्मद स अरबी ज़ुबान बोलते थे| तो अरबी ज़ुबान मैं जो शक़स खुद को सुपुर्द कर दे और पेश कर्दे वो मुसलमान है|अल्लाह ताआला का हर रसूल और पेगम्बर बिल्कुल एक जेसा लेकर आए और ये बुनियादी पेगाम है के “अज़ीम खुदा की इबादत करो और खूलूस के साथ उसके होजाओ”| इसी तरह हम हर माशहूर पेगमबर के पेगाम की तहकीक करें तो इस हक़ीकत को पा लेंगे|

यहाँ फ़र्क है, ये नतीजा है मुस्नीफो, तरीक्दानो, स्कॉलरॉन और इफ्राद की मुजरिमाना झूते इंदिराज का, मिलावट का, ज़ाति तर्जुमानि का| मिसाल के तोर पर मैं जेसे आपको वाज़े करता हूँ जो के आप पहले ही जानते हैं| एक ईसाई के हैसियत से मैने इसे देखा मेरे मुसलमान होने से पहले और मैं नही समझता था के केसे पूरे पुराने एहेडनामे मैं खुदा को हमेशा एक के हवाले से ज़िक्र किया गया है| आका और मालिक और कयनात का बादशाह और यही पहला हुक्म मूसा को दिया गया था| वो इजाज़त नही देता के किसी तराशि हुई ष्बी की इबादत की जाए या जन्नत मैं किसी चीज़ के सामने झुका जाए या ज़मीन पर या समुंदर मैं| वो खुदा हरगिज़ इजाज़त नही देता| तमाम रासूलों ने कहा के खुदा सिर्फ़ एक है| पूरे पुराने एहेद्नामे मैं इस बात को बार बार दोहराया गया है| और फिर अचानक हम चार एहेद्नामे पाते हैं जो के चार गॉस्पेल कहलाई जाती हैं मेथ्हियु, मार्क, ल्यूक और जॉन| मेथ्ह्यु कौन है? मार्क कौन है? ल्यूक कौन है? जॉन कौन है| चार अलग अलग गॉस्पेल जो के ४८ सालों मैं लिखी गयी थीं, और उनमे से किसीने भी एक दूसरे की मदद नही की और नाही उनमे से किसीने भी अपने नाम का आखरी हिस्सा लिखा है| अगर मैं आपको इस महीने के वेतन का चेक दूँ और मैं उस पर अपने नाम का पहला हिस्सा लिखूं और कहूँ इसे बेंक लेजाओ क्या आप इस चेक को क़ुबूल करेंगे? नही, आप नही करेंगे| अगर पोलीस वाला आपको रोके और आपसे आपकी पहचान मालूम करे या पासपोर्ट माँगे और आप उसे सिर्फ़ अपने नाम का पहला हिस्सा बताएँ, क्या वो उसे मान लेगा? क्या अपने नाम का पहले हिस्से वाला पासपोर्ट ले लेंगे? क्या आपके मा बाप आपको सिर्फ़ एक ही नाम देते हैं? कहाँ पूरी इंसानों की तारीख मैं एक नाम को काग़ज़ात मैं शामिल किया गया है, कहाँ? कहीं नही सिवाय नये एहेद्नमे के!

और केसे आप इन चार इन गॉस्पेल पर इमान रख सकते हैं जो चार शक्सो ने लिखी हैं जिनके नाम का आखरी हिस्सा कहीं मालूम होता दिखाई नही देता? फिर इन चार गॉस्पेल के बाद एक श्कस ने करीब १५ किताबें लिखीं जो के एक मुर्तद था और उसने ईसआयिओं का कतल किया, उन पर तश्तद किया और फिर उसने कहा के उसके तसववौर मैं ईसा अलेअस्सलम आए थे और वो मुख़्तार था जेसे एक इशू का रसूल(अपोस्टेल ऑफ जीसस)| अगर मैं आपको बताउ के तमाम यहूदियू को मारने के बाद हिट्लर ने फ़ैसला किया उसे जान बचाने के लिए जगह चाहये और तो वो ईसा से या मूसा से मिला और यहूदी हो गया? नही, आप इसे क़ुबूल नही करेंगे| तो केसे जिन्होने चार जिन्होने चार किताबें लिखी बगैर अपने नाम के आखरी हिस्से के और १५ दूसरी किताबें लिखीं गयीं एक दूसरे श्कस से| इन मैं पहली दफ़ा खुदा एक श्कस “इंसान” कहलाया, और पहली दफ़ा तीन मैं कहलाया और पहली ही दफ़ा खुदा ने बेटा दिया था| ये केसे ईसाइयू के लिए काबिल ए क़ुबूल है? केसे? ज़रा इस बारे मैं सोचिए! मैं इस नुकते पर बहेस नही करूँगा| मैं सिर्फ़ आपको सोचने के लिए कुछ देना चाहता हूँ|

हज़रत मोहम्मद स ना तो कोई नया मज़हब लेकर आए थे या नाही ज़िंदगी की नयी राह जिसे कुछ लोग बादशुगनी का दावा करते हैं| इसके उलट हज़रत मोहम्मद ने पिछले तमाम रसूल और पेगंबरों के पेगामत और उनकी ज़िंदगी की ताज़दीक की| दोनो को अपने ज़ाति अमल के ज़रिए और जो उन्हे अल्लाह की तरफ से वही की जाती थी| मकद्दीस किताब जो हज़रत मोहम्मद स लेकर आए जिसे क़ुरान कहा जाता है| इसका मतलब है “जिसकी तिलावट की जाए|” क्यूंकी मोहम्मद स ने क़ुरान नही लिखा था| वो क़ुरान के मुनसिफ़ नही थे| कोई क़ुरान को लिखने मैं उनकी मदद को नही आया था और नाही उसके लिखने मैं किसीने उनके साथ शिरकत की थी| फरिश्ता जिसका नाम जिब्राइल था पढ़कर उनको सुनाता और अज़ीम खुदा ने उनके दिल को क़ुबूल करने वाला कर दिया था| हज़रत मोहम्मद स वही को याद करते थे और हमारे पास जो क़ुरान है सालों से किसी भी तब्दीली से महफूस है| क्या आएसी कोई और किताब है दुनिया मैं हिसे आप जानते हों के वो बिना किसी तब्दीली के महफूस हो? नही कोई किताब नही, सिर्फ़ क़ुरान है|

आप मेरे अल्फ़ाज़ पर मत जाएँ! लाइब्ररी जाएँ और पढ़ें एन्साइक्लोपीडिया ब्रितानीका या वर्ल्ड एन्साइक्लोपीडिया, या अमेरिकनास एन्साइक्लोपीडिया या कोई दूसरा दुनिया का एन्साइक्लोपीडिया जो की किसी मुसलमान ना लिखा हो| पढ़ें के क्या कहतें हैं ये सब इस्लाम, क़ुरान और मोहम्मद स के बारे मैं| गैर मुस्लिम पढ़ें गौर ओ फ़िक्र के साथ क़ुरान, इस्लाम और मोहम्मद स के बारे मैं क्या कहते हैं| फिर आप मान जाएँगे की जो मैं कह रहा हूँ वो दुनिया की दस्तावेज़ों मैं सॉफ सॉफ है! और मोहम्मद स इंसानियत की तारीख की सबसे बढ़ी शक्सियत हैं| पढ़ें वो क्या कहतें हैं कुरान सबसे अविश्वसनीय, इतिहास के इतिहास में साहित्य का सबसे गहरा टुकड़ा है! पढ़ें वे क्या कहते हैं के इस्लामी अनूकूल ज़िंदगी अलग, बेहतरीन और गतिशील ज़िंदगी है ये कभी नही बदलती|

पवित्र शास्त्र जो की मोहम्मद स को मिला ‘क़ुरान’ कहलाता है और हर एक रसूल और पेगंबर ने भी पवित्र शास्त्र लिए| क़ुरान मैं इन रसूलओं का, उनके पवित्र शास्त्रओं का उनकी कहानिया और उनके काम के उसूलों के बारे मैं ज़िक्र किया गया बहुत फ़िक्र के साथ| क्या मोहम्मद स उनसे मिले थे, उनसे बातें की थीं, उनके साथ खाना खाया था या शरीक हुए थे की उनकी आत्मकथा लिखी जाए? नही, बिल्कुल नही| क़ुरान मैं मोहम्मद स का हवाला अज़ीम खुदा के पेगंबर से दिया गया है| पिछले पेगंबरों के संदोषों की पुष्टि करते हैं| जो के एक इंसान होने की हेसियत से उनके किरदार की हद है|

“मोहम्मद तुम्हारे मर्दो मैं से किसी के पिता नही हैं, बल्कि अल्लाह के सन्देश्ता और नबियो की मोहर हैं और अल्लाह तो हर चीज़ से खूब वाकिफ़ है”

[क़ुरान ३३, सुरा ४०]

मुसलमान मोहम्मद स की इबादत नही करते, हम ‘मोहम्मदी’ नही हैं| हमें ये हक़ हासिल नही है के हम मोहम्मद स का नाम तब्दील करें और ‘मोहम्मदी’ कहलाएँ| नही, लोग जो मूसा की पेरवी करती हैं क्या वो ‘मोसय्येन’ थे| जो लोग याक़ूब की पेरवी करते थे क्या वो ‘यकूविअन’ कहलाते थे| या इब्राहिम की पेरवी करने वाले ‘इब्रहिमियन’ थे या ‘दाऊदियान’| नही नही नही| तो फिर केसे लोग खुद को ‘ईसाई’ कहलाते हैं? ईसा अल्एसलाम ने खुद को कभी ईसाई नही कहा तो केसे लोग खुद को ईसाई कहलवाते है?

ईसा अल्एसलाम ने फरमाया के मैने अपने अज़ीम खुदा से जो भी लिया वो हर एक लफ्ज़ खुदा का था और उसने वो सुना है जो खुदा ने कहा! के वही इसने किया! तो क्यूँ लोग खुद को ईसाई कहल वाते हैं? हमें ईसा अल्एसलाम की तरह होना पढ़ेगा और क्या था जो ईसा अल्एसलाम की तरह था? वो एक अज़ीम खुदा की खिदमत करने वेल थे, तो हमें भी चाहये की हम भी बस अज़ीम खुदा के खिदमत गुज़ार बन जाएँ|

आखरी साहित्य और खुदा की वाणी की हेसियत से, क़ुरान मैं बहुत सॉफ और थोड़ा बयान किया गया है, ‘आज मैने तुम्हारे लिए दीन को पूरा कर दिया और तुम पर अपना इनाम भरपूर कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम के दीन होने पर रज़ामंद हो गया’ [क़ुरान सुरा ५, आयात ३] तो क़ुरान के ज़रिए शब्द ‘सलाम’ आया क्यूंके जब इमारत मुकम्मल होती है तो आप उसको एक घर कहतें हैं| जब एक कार बनने की तय्यरी मैं होतो आप उसे गाढ़ी नही कह सकते क्यूंके वो अपने बनने के दौर से गुज़र रही है| जब वो पूरी बन जाती है, उसको नाम देदिया जाता है, उसको गाढ़ी को चला कर देखा जाता है, तब ये गाढ़ी पूरी होती है| जब इस्लाम मुकम्मल हुआ था जेसे वाणी पूरी हुई, जेसे एक किताब पूरी हुई, जेसे मुहम्मद स की ज़िंदगी जो नमूना थी पूरी हुई फिर ये इस्लाम बना| ये एक पूरी ज़िंदगी का रास्ता हुआ|

तो ये शब्द है जो के नया था लेकिन ये अमल मैं नही था| ना तो रसूल, खुदा का हुक्म नही था, ना एक नया खुदा, ना ही नयी वाणी, लेकिन सिर्फ़ एक नाम, इस्लाम और जेसे मैने पहले कहा था तमाम पेगंबर कौन थे? वो सब मुसलमान थे| एक और बात मोहम्मद स के बारे मैं अपने ज़ह्नों मैं रखें जो के इनको नुमाया करती है के पिछले तमाम रासूलों की तरह वो सिर्फ़ अरब के लिए नही आए थे या सिर्फ़ अपने लोगों के लिए नही| बहराल इस्लाम अरब का एक मज़हब नही है बलके अब्दुल्लाह के बेटे पेगमबरे इस्लाम मोहम्मद स मक्का मैं पैदा हुए जो के अरब नाम के जज़ीरा है और वो पैदाइशी अरबी थे| वो इस्लाम सिर्फ़ अरबीयूं के लिए नही लाए थे लेकिन सारे इंसानों के लिए लाए थे|

हालांकें क़ुरान अरबी ज़ुबान मैं उतारा गया है, जो इस हक़ को या दावे को खारिज करता है की मोहम्मद स का पैगाम अरबियों तक मह्दूद था या सिर्फ़ अरबियों के लिए था| क़ुरान मजीद मैं अल्लाह ताआला फरमाते हैं के

“और हमने आपको तमाम जहाँ वालों के लिए रहमत बना कर भेजा है”

[क़ुरान सुरा: २१ आयात:१०७]

लिहाज़ा मोहम्मद स आखरी रासूल हैं और सारे रासूलों और पेगंबरों के ताज हैं, बहुत से लोगों को ये मालूम नहीं है|

और जब से मैं अपनी इस प्रेज़ेंटेशन की मदद के लिए क़ुरान पाक के हवाले दे रहा हूँ, अब मैं आपको खुद क़ुरान के पसमंज़र के बारे मैं बताओंगा| पहले बात तो ये क़ुरान दावा करता है के ये मजमुआ है अल्लाह की तरफ से भेजी गयी वाणी का| इस का मतलब है के क़ुरान अज़ीम खुदा की तरफ से मोहम्मद स पर वाणी के माध्यम से उतारा गया|

अल्लाह ताआला फरमाते हैं के
“और ना वो अपनी इच्छा से अपनी बात कहते हैं| वो तो सिर्फ़ वाणी है जो उतारी जाती है”

[क़ुरान सुरा ५३, आयात ३-४]

मोहम्मद स खुद भी ना कुछ कहते हैं, उनके ख्यालात, उनकी इच्छा या उनके जज़्बात और एहसास भी उनके अपने नही हैं| लेकिन वो एक वाणी है जो के उनपर ज़ाहिर होती है! यही अल्लाह ताआला क़ुरान पाक मैं फरमाते हैं| लिहाज़ा मैं अगर आपको क़ुरान की ताज़ादीक करने के लिए कायल करू, जो के मैं ज़रूर करूँगा| पहली बात ये है के नामुमकिन है के मोहम्मद स खुद से इस तरह की कोई किताब बना सकें| दूसरा ये के मैं साबित करूँगा के इसी तरह की किसी इंसानो की जमात के लिए भी ये मुमकिन नही था के वो इसको बना सकते| चलिए हम ज़रा इस बारे मैं सोचते हैं|

क़ुरान पाक मैं बयान है के,

“और हमने इंसानों को पैदा किया कतरे से जो के रहम की दीवारों से जाम जाता है”

[क़ुरान सुरा २३, आयात १४]

“जिसने इंसान को खून के लोतड़े से पैदा किया”

[सुरा ९६, आयात २]

केसे मोहम्मद स ने जाना के लोथड़ा एक कतरे से बनता है और माँ के रहम की दीवारों से चिपक जाता है? क्या उनके पास टेलिस्कोप थी? क्या उनके पास साइन्स स्कोप थी? क्या उनके पास कोई आएसी चीज़ थी जो एक्स रे की तरह काम करती थी? क्या उन्होने इस बारे मैं कहीं से ज्ञान हासिल किया था, जो के अभी ४७ साल पहले खोजा गया है?

इसी तरह वो केसे जानते थे के समुंद्रओ के बीच मैं रुकावट है जो नमकीन और ताज़ा पानी को अलग करती है|

“और वही है जिसने दो समुंदर आपस मैं मिला रखें हैं ये है मीठा और मज़ेदार और ये है खारा कड़वा, और इन दोनो के दरमियाँ एक परदा और मज़बूत रुकावट करदी”

[क़ुरान सुरा २५, आयात ५३]

वो ये केसे जानते थे?

“वही अल्लाह है जिसने रात और दिन और सूरज और चाँद को पैदा किया है. इनमे से हर एक अपने दायरे मैं तैर रहें हैं”

[क़ुरान सुरा २१, आयात ३३]

वो केसे जानते थे के सूरज चाँद और तारे सब अपने अपने दायरे मैं तैरते हैं जेसे उन्हे ये करने के लिए किसीने हुक्म दिया हो? वो केसे ये केसे जानते थे? और बहुत बहुत बहुत कुछ- केसे वो ये सब जानते थे? ये सब चीज़े २५ या ३० साल पहले खोजी गयीं हैं| टेक्नालजी और साइन्स, इनमे ज़यदातर अब खोजी गयी हैं| मोहम्मद स जो के १५०० साल पहले एक अनपड़ चरवाहे थे जो के रेगिस्तान मैं बढ़े हुए| बिना पढ़े लिखे केसे वो ये सब जान सकते थे? केसे उन्होने इस तरह क़ुरान को बनाया? और केसे कोई और उनके साथ रहने वालों मैं से, उनसे पहले रहने वालों मैं से और उनके बाद आने वालों मे से किसीने नही पाया, को अब खोजा जा रहा है? ये नामुमकिन है! केसे एक शाकस जो के अरब नाम के जज़ीरे से बाहर ना गया हो, ना कभी पानी के जहाज़ पर सफ़र किया हो, जो के १५०० साल पहले था इस ने बताईं इतनी सॉफ और हैरत अंगेज़ बातें जो के अब २०वीं सदी के आख़ीरवें हिस्से मैं खोजी जा रहीं हैं?

सिर्फ़ अगर ये सब काफ़ी नही है तो मैं आपको बताता हूँ के क़ुरान पाक की १४० सूरतें (बाब) हैं, ६००० से ज़ादा आयात हैं और मोहम्मद स के दौर मैं भी ऐसे लोग थे जिन्होने क़ुरान पाक को ज़ुबानी याद किया हुआ था| ये केसे हो सकता है? क्या वो किसी किस्म के ज़हीन थे? क्या किसीने गॉस्पेल को ज़ुबानी याद किया है? क्या आपमें से किसीने? क्या किसीने ने तोराह या ज़ुबूर को याद किया, पुराने अहेद्नामे या नये अहेद्नमे को ज़ुबानी याद किया? किसीने नही किया यहाँ तक की पोप ने भी याद नही किया|

लेकिन यहाँ आज भी करोरों मुसलमान हैं जो पूरी किताब को ज़ुबानी याद करतें हैं यही हर मुसलमान की खुवहिश होती है, कुछ की नही बलके सब की! कितने ईसाई आएसए हैं जो आपको आपकी ज़िंदगी मैं मिले होंगे जिन्होनें इंजील ज़ुबानी याद की हो? कोई नही| आप कभी ऐसे ईसाई से मिले हैं जिसने पूरी इंजील याद की हो, क्यूंके आप कभी ऐसे ईसाई से नही मिले जो पूरी इंजील को जानता हो| ये क्यू है? क्यूंके ईसाई मैं सात सो ज़ादा फिरके हैं और तकरीबन ३९ अलग अलग किताबें हैं इंजील की फिर और अलग अलग किताबो पर किताबें| अलग अलग तादाद मैं बाब और अलग अलग उनकी आयतों की तादाद और वो उनको मानते भी नही| जब वो उनको मानते हे नही हैं तो केसे वो उसको ज़ुबानी याद कर सकते हैं|

ये कुछ हक़ीकत है क़ुरान के बारे मैं| क़ुरान पूरी दुनिया मैं बिना किसी मामूली से परिवर्तन के १५०० साल से महफूज़ है और मैं अस्वीकार करने के अंदाज़ मैं नही कह रहा| मैं एक श्कस हू जो ईसाई था| एक श्कस जिसने अपनी खोज से ये सब चीज़ें पाईं| एक श्कस जो अब आपके साथ ये मालूमत पहुँचा रहा है| कुछ पत्थरों को पलटकर आपको उसके अंदर दिखाने के लिए और बाकी आप पर है!

सिर्फ़ आप इतना सोचिए के अगर ये सब सच हो तो आप मानने लगेंगे के ये किताब सच मैं गौर ओ फ़िक्र वाली है? और कम से कम कह सकते हैं के ये अनोखा है? क्या आप इतना सच्चा बनना चाहते हैं की ये कह सकें? यक़ीनन आप चाहेंगे, अगर आप सच्चे थे और आप सच्चे हों| आप अपने आप मैं देखिए आपको उन बातों को मानना पढ़ेगा बहुत से दूसरे गैर मुस्लिम भी इस नतीजे पर पहुँचे| जिन मे बेंजामिन फ्रॅंक्लिन, थॉमस जेफेरसन, नापोलियन बोनपार्ट और विन्सटन चर्चिल जेसे सिर्फ़ चन्द नाम हैं और बहुत से हैं अगर मैं बताऊं तो बताता चला जाओं ये सब इसी नतीजे पर पहुँचे| ये और बात है की उन्होनें खुले आम इस्लाम क़ुबूल किया या नही| वो इस नतीजे पर पौनचे की इस दुनिया मैं कोई दूसरा अदब नही जिसमे इतना गौर ओ फ़िक्र हो जितना की क़ुरान मैं है ये एक ज़रिया है हिकमत का, सब्र का और सीधे रास्ते का|

अब हमने क़ुरान की सदाक़त की बात करली, अब हम दूसरे बात पर आते हैं क़ुरान की बुनियादी मज़ामीन| अज़ीम खुदा की एकीशवरवाद, जो के इसके नाम मैं, इसके सिफ़तों मैं, अज़ीम खुदा और उसकी मखलोक के दरमियाँ ताल्लुक मैं, केसे इंसानों को इस ताल्लुक को क़ायम रखनें मैं शामिल हैं| रासूलों और पेगंबरों का सिलसिला, इनकी ज़िंदगियाँ, इनके पैगामात और इनका तमाम काम जो इन्होने किया| इनका इसरार के ये पेरवी करें मोहम्मद स की जो के रासूलों और पेगंबरों मैं आखरी और कयनात के लिए एक मिसाल हैं| लोगों के याद दिलाएँ के उनकी ज़िंदगी बहुत छोटी है और उनको बुलाया जायगा वहाँ हमेशा की ज़िंदगी के लिए| इस बात का मतलब इसके बाद की ज़िंदगी| इसके बाद आप ये जगह छोड़ जाओगे और कहीं और चले जाओगे| इसका मतलब आज रात नही मगर मरने के बाद आप इस ज़मीन को छोड़ कर कहीं और चले जाओगे बेशक आप मानो या ना मानो आप इसबारे मैं आप नही जानते| आपको वहाँ जाना है, आप ज़िम्मेदार हैं क्यूंके आपको बता दिया गया है यहाँ तक के आप इसे नकार दो| क्यूंकी ज़िंदगी का मतलब यहाँ ये नही है के आप बैठे रहो, कुछ ना करो और आप पर कोई असर ना होगा| हर वजह का असर होता है और आप इस ज़िंदगी मैं एक वजह से हैं, एक मकसद के लिए तो असर तो लाज़मी पढ़ेगा कुछ करने का किसी किस्म का असर तो लाज़मी होगा| आप स्कूल नही जाएँगे तो आप ठहरे रहेंगे! आप काम पर नही जयनगे तो मुआवज़ा भी नही मिलेगा! आप घर नही बनायंगे तो उसके अंदर जा भी नही सकते! लिबास नही बनवायंगे तो पहनेगे भी नही! आप बढ़े ना हो बच्चो के जेसे तो जवान भी नहीं होंगे! आप कोई भी काम बगैर किसी मुमकिन इनाम के नही करते! आप नही जी सकते बगैर मरने की सोच के! आप मर नही सकते बगैर किसी कब्र की संभावना पर और आप ये ख्याल नही कर सकते के क़ब्र ख़ात्मा है| क्यूंकी इसका मतलब होगा की खुदा ने आपको बेवकूफ़ाना मकसद के लिए पैदा किया था| और आप स्कूल नही जाते, काम नही करते या कुछ नही करते या बीवी पसंद नही करते या बच्चो के नाम बेवकूफ़ाना मकसद के लिए चुनते हो| केसे आप खुदा को अपने से कम समझ सकते हो?

मुतवज्जे करने, तसव्वुर से कायल करने, और गौर ओ फ़िक्र के काबिल करने के लिए क़ुरान भत गहराई और खूबसूरत अंदाज़ मैं बताता है महासागर और दरियाओं की, पेड और पोधो की, परिंदो और कीढ़े और मकोड़ो की, जंगली और पालतू जानवरों की, पहाड़ो, वादियों, जन्नत के फेलने की, फरिश्तों और कायनात की, मछलीओ और पानी के जीव जनतूओं की, इंसानी की शारीरिक रचना और जीव विज्ञान की, इंसानी सभ्यता और इतिहास की, मानव भ्रूण के विकास की, स्वर्ग और नरक के विवरण की, मानव भ्रूण के विकास की, सब नबी और दूत के काम की, ज़मीन पर ज़िंदगी के मकसद की| तो केसे एक चरवाहाः लड़का रेगिस्तान मैं पैदा होने वाला जो बगैर पढ़े लिखे पैदा हुआ और पढ़ नही सकता, केसे वो इन सब चीज़ों की पुष्टि कर सकता है जिनका कभी उस से संपर्क ही नही हुआ था?

बहराल सबसे ज़्यादा मुनफ़रीद चीज़ जो क़ुरान की है जो तमाम पिछली मुकद्दस किताबों की पुष्टि करता है| डीन इस्लाम का अच्छी तरह जायज़ा लेकर आपको फ़ैसला करना चाहये के आप मुसलमान हों, आप अपने आप से ये ना सोचें के आप मज़हब बदल रहें हैं! आप अपना मज़हब नही बदल रहे हैं| आप देखिए की आपका वज़न कम हो जाए तो आप अपना $५०० डॉलर का लिबास नही फेंकना चाहेंगे, यक़ीनन नहीं! आप उसे दर्ज़ी के पास लेकर जाएँगे और कहेंगे के सुनो, मेहेरबानी करके! इसे मेरे लिए थोड़ा सा छोटा करदो आप इसमे कुछ सही कराएँगे क्यूंके ये लिबास आपको पसंद है इसी तरह अपने ईमान के, इज़्ज़त के, पाकिज़गी के, ईसा अल्एसलाम की मोहब्बत के, आप के खुदा से ताल्लुक के साथ, आप की इबादत, आपकी सच्चाई और आपकी अज़ीम खुदा के वक्फ़ होने के साथ इसे तब्दील ना करें की इसे छोड़ दें! आप इस पर क़ायम रहें लेकिन खुद को सही करें जहाँ आप जानते हैं की सच आपको मालूम हो गया है! यही सब कुछ है|

इस्लाम सादा है: सिर्फ़ गवाही देता है की कोई इबादत के लायक़ नही सिवाए अज़ीम खुदा के| अगर मैं आप से पून्छू के आपके पिता आपके पिता हैं, आप मैं से कितने कहेंगें के हाँ मेरे पिता मेरे पिता हैं, मेरा पुत्र मेरा पुत्र है मेरी पत्नी मेरी पत्नी है, मैं हूँ जॉमैन हूँ| तो फिर केसे है ये आप इस बात की गवाही देते हुए घबराते हैं की अज़ीम खुदा तुम्हारा मालिक और खालिक है? क्यूँ आप गुरूर करते हैं आएसा करने मैं? क्या आप अज्मत वालें हैं? क्या आपके पास कोई आएसी चीज़ है जो खुदा के पास नही है? या क्या आप उलझे हुए हैं? ये सवालात हैं जो आप खुद से करें|

अगर आपके पास मौका होता की आप चीज़ें सही रखें अपने शहूर से और फिर खुदा के साथ चीज़ें सही रखें, क्या आपको आएसा करना चाहये? अगर आप को मौका मिलता तो आप पूछते खुदा से के मेरा जो सबसे बेहतरीन काम है उसे क़ुबूल करें क्या आपको आएसा करना चाहिए? अगर आपको ऐसा मोका मिले आपके मरने से पहले और आप समझें की आज रात को आप मार सकते हैं तो क्या आप को कोई संकोच नही होना चाहिए इस बात की गवाही देने मे की अल्लाह एक है? अगर आप समझें की आप आज रात को इंतिक़ाल कर जाएँगे और आपके सामने जन्नत हो और पीछे दोज़ख़् की आग, क्या आप अब भी हिचकिचायँगे इस बात की गवाही देने से की मोहम्मद स खुदा के आखरी पेगंबर और खुदा के तमाम रासूलों के नुमाय्न्दे हैं? आप को हिचकिचाना नही चाहये इस बात की गवाही देने से के आप भी उन बहुत से लोगों मैं शामिल हो जाएँगे जो अल्लाह की किताब मैं अपना नाम दर्ज कराना चाहतें हैं|

लेकिन आप सोच रहे हैं के आप थोड़ी ज़िंदगी और जीना चाहते हैं और यक़ीनन अभी आप तय्यार नही हैं की रोज़ इबादत की जाए! इस लिए आप सोचते हैं के थोड़ी ज़िंदगी को आएसए ही गुज़ारा जाए| लेकिन कब तक थोड़ी थोड़ी ज़िंदगी गुज़ारेंगे? कितना अरसा हो गया की आपका सर बालों से भरा हुआ था? कितना अरसा हो गया जब आपके बाल काले थे? आपके घुटनो, कोहनियों और दूसरे हिस्सों मैं दर्द रहने लगा! कितना अरसा हो गया जब के आप बच्चे थे, बगैर किसी फ़िक्र के भागते थे, खेलते थे? कितना अरसा हो गया इनको? ये कल ही तो था! हाँ और कल आपको मार जाना है तो कितना अरसा आप इंतिज़ार करना चाहते हैं?

इस्लाम गवाही है के अज़ीम खुदा ही खुदा है सिर्फ़ एक खुदा बगैर किसी की शिरकत के| इस्लाम गवाही है की फरिश्ते हैं जो की ज़िम्मेदारी के साथ पेगंबारो के पास वाणी लेकर भेजे जातें हैं, वो लेकर आते हैं पैगाम रासूलों के लिए, वो पहाड़ो, हवाओं, महासागरों को काबू मैं करते हैं और जान निकलते हैं जिनके लिए खुदा हुक्म देता है| इस्लाम गवाही है के तमाम अज़ीम खुदा के रसूल और पेगंबर सच्चे थे| और वो सब अज़ीम खुदा की तरफ से इस हक़ीकत की गवाही कराने के लिए भेजे गये थे की एक फ़ैसले का दिन तमाम मख्लूकात के लिए आयगा| इस्लाम गवाही है की तमाम अच्छाइयों और बुराइयों का अज़ीम खुदा हिसाब लेगा| आख़िर मैं इस्लाम गवाही है के इस पर ईमान होना के हमें मरने के बाद ज़िंदा होना है|

हर मुसलमान पर बुनियादी ज़िम्मेदारी जो लागू होती हो बहुत सादा हैं| हक़ीकत मैं सिर्फ़ पाँच चीज़ें हैं| इस्लाम एक बढ़े घर की तरह है और हर घर की बुनियाद और खंबे होते हैं जो घर को कायम रखने मैं मदद देते हैं| खंबे और बुनियाद और आपको घर उसूलों के साथ बनाना पढ़ेगा| खंबे हैं वो उसूल| और आप जब घर बनाते हैं तो इन लाज़मी उसूलों की पाबंदी करते हैं| सब से अहम उसूल इस्लाम का अकीदा तोहीद को मज़बूती से थामे रखना के अल्लाह के साथ किसी को शरीक ना करो| अल्लाह के साथ किसी की इबादत ना करो| खुदा से ऐसा ना कहो जिसके कहने का आपको हक़ नही हैं, जब आप गवाही देते हैं तो सज़ावार भी आप खुद हैं| जो चाहें वो सज़ा पाएँ| आप चाहे तो अपने लिए अमन और जन्नत की सज़ा लें या फिर चाहें तो उलझन, दाबाओ, जहन्नम की आग और जिस्मानी सज़ा पाएँ| आपकी सज़ा आपकी है|

तो अपने आप से पूछिए ‘के आप गवाही देंगे के खुदा सिर्फ़ एक है?’ जब आप खुद से ये सवाल पूछेंगे तो आपको जवाब मिलना चाहये ‘हाँ, मैं गवाही देता हूँ’|फिर आप खुद से पूछें अगला सवाल के मैं गवाही देता हूँ के मोहम्मद स अज़ीम खुदा के पेगंबर हैं? “हाँ, मैं गवाही देता हूँ”| अगर आप ये गवाही देते हैं तो आप मुसलमान हैं और आप को खुद को तब्दील नही करना पढ़ेगा| सिर्फ़ अपने आप की इस्लाह करनी होगी अपनी सोच मैं और अपने अमल मे|

आख़िर मे, मैं आपसे सवाल करता हूँ के: क्या आप समझे जो मैने आपसे कहा? अगर आप इसको मानते हैं जो मैने कहा और इस्लाम मैं दाखिल होने और मुसलमान होने के लिए तय्यार हैं| तो मुसलमान होने के लिए आपको लाज़मी है के कलमा शहादत का एलान करें; जो के एलान है के मैं ईमान लाया खुदा के एक होने पर और क़ुबूल किया के मोहम्मद स खुदा के रसूल हैं|

ला इलाहा इल्लल लाहू मोहम्मदुर रसूल अल्लाह नही कोई माबूद सिवाए अल्लाह के और मोहम्मद स अल्लाह के रसूल हैं|

सही उच्चारण के लिए वीडियो देखें!!

अल्लाह हम सब पर रहम करे और हमे सीधा रास्ता दिखाए| मैं तमाम गैर मुसलमानो को – जो इस इशात को पढ़ रहें हों कहता हूँ के खुद से सच्चे हों जो आपने पढ़ा है इसके बारे मैं सोचें| इस जानकारी को अपने पास रखें और खुद मैं जज़्ब कर लें| किसी मुसलमान के साथ बैठें और इस्लाम की खूबसूरती के बारे मैं उस से और तफ़सील मालूम करें| अगला कदम बढ़ाएँ!

जब आप इस्लाम क़ुबूल करने के लिए और मुसलमान होने के लिए तय्यार हो जाएँ, तो औपचारिक रूप से मुसलमान होने से पहले खुद को धो लें| इस्लाम क़ुबूल करें| इस्लाम के बारे मैं जानें इस पर अमल करें और खुदा की दी गयीं नेमतों (इनाम) का आनंद लें क्यूंकी ईमान सब कुछ नही है के जिस से आप बकषे जाएँ| अगर आप इस पर अमल नही करेंगे तो आप इसकी खुश्बू खो देंगे| ए अल्लाह हमारी रहनूमाई फरमा| ए अल्लाह हमारी मदद फरमा और मैं सरहाता हूँ आपको इस अेज़ाज़ का जो मुझे बक्शा गया और मुझे बोलने का मौका फराहिम किया गया इस इशात के ज़रिए|

السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ
अस्सलामो अलैकुम वा रहमतुल्लाह वा बरकाताहु

[तर्जुमा: आप सब पर अल्लाह की सलामती हो, रेह्मते हों और बरकतें हो|”]

अगर आप मुसलमान होना चाहतें हैं या आपको इस्लाम के बारे मैं मज़ीद जानकारी चाहये तो, बराए मेहेरबानी हमें ई-मेल करें: info@islamicbulletin.org.


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